Monday, March 27, 2017

मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम

रोटी, कपड़ा, मकान. हमारे देश में कभी इंसान की बुनियादी जरूरतों को इस नारे के साथ परिभाषित किया जाता था. लेकिन इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में मोबाइल क्रांति की शुरुआत से इसमें एक शब्द मोबाइल भी शामिल हो गया. 2010 के दशक में तो यह हर आमोखास की जरूरत में शामिल हो गया. इसने लोगों की जीवनशैली ही बदल दी. लेकिन मोबाइल है क्या फंडा?
वस्तुत: मोबाइल फोन एक ऐसा उपकरण है जिसके जरिए हम चलते फिरते कहीं भी नेटवर्क दायरे में बात कर सकते हैं. इसे सेल्यूलर फोन, सेलफोन, हैंडफोन भी कहा जाता है. मोबाइल फोन के लिए उसका नेटवर्क से तार से जुड़ा होना जरूरी नहीं है. यह बेतार है और रेडियो लिंक के जरिए काम करता है. कार्डलैस और मोबाइल फोन में बड़ा अंतर केवल दूरी या रेंज का है. कार्डलैस्‍ा फोन एक सीमित दायरे में काम करता है जबकि मोबाइल फोन अपने नेटवर्क प्रदाता की रेंज में किसी भी भूभाग में काम कर सकता है.
स्‍मार्टफोन के आने के बाद तो मोबाइल फोन एक तरह से कंप्‍यूटर में ही बदल गया. 3जी सेवाओं की शुरुआत के बाद इनसे वीडियोकालिंग जैसी सुविधा शुरू हुई है. एसएमएस, एमएमएस, फोटो, वीडियो भेजना, चैटिंग, ईमेल सुविधा तो पहले ही इन फोन के जरिए ली जा रही थी.
जहां तक इतिहास की बात है तो पहला सेलफोन मोटोरोला कंपनी के जान एफ मिशेल तथा डा मार्टिन कूपर ने 1973 में प्रदर्शित किया था. रोचक तो यह है कि तब इसका वजन लगभग दो किलो था जो कि 2010 के दशक में घटकर कुछ ग्राम रह गया. वाणिज्यिक रूप से पहला सेलफोन जो बाजार में आया वह डायनाटीएसी 800 एक्‍स था.
भारत में भी पहला मोबाइल मोटोरोला ने बनाया था.
1995 में देश में पहला मोबाइल फोन पेश हुआ और देखते ही देखते इसने लैंडलाइन फोन के अस्तित्‍व को ही संकट में डाल दिया.
आई-ओएस 
यह एपल का मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम है, यानी इस पर आई-फोन काम करता है। इसके अलावा आई-पॉड टच और पिछले दिनों लॉन्च हुई एपल की टैब्लेट डिवाइस आई-पैड भी इसी पर चलती है। इसे ऐप्लिकेशन डिवेलप करने वालों में सबसे पॉपुलर प्लैटफॉर्म माना जाता है। इस साल जून में एपल ने इस ऑपरेटिंग सिस्टम का चौथा वर्जन पेश किया था। पहले इस ओएस को आईफोन-ओएस कहा जाता था लेकिन इसी साल इसका नाम आई-ओएस कर दिया गया है।

यह पहला ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम था, जिसने लोगों के बीच टचस्क्रीन फोन की पॉपुलैरिटी को नए मुकाम तक पहुंचाया। लोगों को पहली बार वाकई किसी फोन को इस्तेमाल करते हुए मजा आ रहा था और फिर तो इसकी बस नकल शुरू हो गई। लेटेस्ट वर्जन में मल्टिटास्किंग का फीचर भी आ गया है यानी आप एक साथ कई ऐप्लिकेशन में काम कर सकते हैं। लेकिन सबसे पहले इसने जिस तरह मल्टिटच वाला इंटरफेस दिया, वह गजब का था। फ्लुइड इंटरफेस पर स्वाइप, पिंच, टैप, स्लाइड, कुछ भी इतनी आसानी से कर सकते थे, जो पहले कभी नहीं देखा गया। हालांकि अब ये फीचर कई ऑपरेटिंग सिस्टमों और हैंडसेटों पर हैं, लेकिन आज तक कोई दूसरा आई-ओएस की बराबरी नहीं कर पाया है। 

विंडोज मोबाइल 
जो ओएस कंप्यूटर की दुनिया का बादशाह है, उसका मोबाइल में सिक्का नहीं जम पाया। विंडोज को लेकर लोगों में काफी उम्मीदें जगीं लेकिन इस पर चलने वाले फोन अपनी जगह नहीं बना पा रहे हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने अब ऐलान किया है कि वह बहुत जल्द विंडोज फोन 7 लेकर आएगी जो बाकी स्मार्टफोन की नींद उड़ा सकता है। हालांकि इस नए ओएस पर चलने वाले फोन का इंतजार है। दो फीसदी स्मार्टफोन मार्केट शेयर के साथ यह पांचवें नंबर पर खिसक चुका है। इसका करंट वर्जन विंडोज 6.5 है जो इसके पुराने वर्जन 6.1 का अपडेट भर है। 

फीचर और लुक्स के हिसाब से इसे काफी कुछ पीसी के ओएस की तरह रखा गया ताकि लोगों को एक सा अहसास मिले। माइक्रोसॉफ्ट अब पूरा दांव विंडोज फोन 7 के साथ खेल रही है जिसे टचस्क्रीन के हिसाब से खासतौर पर तैयार किया गया है। पुराने वर्जन पर चल रहे विंडोज फोन 7 में अपग्रेड नहीं कर पाएंगे। विंडोज 6.5 पर चलने वाले फोन्स में इस वक्त सैमसंग ओमनिया प्रो बी 7320, एसर बी टच ई200, एचटीसी टच2, टच विवा और टच डायमंड खास हैं। पाम ट्रियो और आसुस पी 527 भी विंडोज फोन हैं।

Android दुनिया के अधिकतर मोबाइल फोन्स में इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे प्रचलित operating system है। नोकिया, ब्लैकबेरी और एप्पल को अगर छोड़ दिया जाए तो सारे मोबाइल सेट्स इसी आपरेटिंग सिस्टम पर काम करते हैं और यह दुनिया में सबसे तेजी से प्रगति करने वाला आपरेटिंग सिस्टम है। तो तकनीकी भाषा में समझिए कि आखिर एंड्रॉयड अन्य operating system से कैसे अलग है। एंड्रॉयड की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि आप इसमें संशोधन (Modification) कर सकते हैं। यानी आप अपनी जरूरत के हिसाब से कोई भी बदलाव कर सकते हैं। इसके अलावा किसी अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम में यह सुविधा नहीं होती है।
क्या है एंड्रॉयड:
दरअसल एंड्रॉयड लाइनेक्‍स आधारित मोबाइल फोन और टेबलेट के लिए तैयार किया गया operating system है। इसे गूगल ने तैयार किया है। दुनियाभर में बिकने वाले अधिकतर मोबाइल फोन इसी सिस्टम पर काम करते हैं। इस ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रति दीवानगी का आलम यह है कि गूगल के मुताबिक यह ऑपरेटिंग सिस्टम दुनियां के लगभग 1 बिलियन से ज्‍यादा स्‍मार्ट फोन और टेबलेट में इस्तेमाल किया जा रहा है।
एंड्रॉयड का इतिहास: एंड्रॉयड एप्लीकेशन अपने नामों के कारण अक्सर चर्चा में रहता है। आपको बता दें कि 30 अप्रैल साल 2009 को एंड्रॉयड ने अपना पहला कमर्शियल वर्जन 1.5 बाजार में उतारा था जिसका नाम कपकेक रखा गया था। इसके बाद एंड्रॉयड के कई वर्जन बाजार में उतारे गए जो अपने नामों के कारण चर्चा का केंद्र रहे।
बाजार में उतरे एंड्रॉयड के अब तक के वर्जन:
·         15 सितंबर 2009 को डोनेट एंड्रॉयड 1.6
·         26 अक्टूबर 2009 को अक्लेर एंड्रॉयड 2.0-2.1
·         साल 2010 एंड्रॉयड 2.2 फ्रोयो
·         दिसंबर 2010 जिंजर ब्रैड 2.3
·         साल 2011 जिंजर ब्रैड का संशोधित वर्जन 2.3.3-2.3.7
·         मई 2011 हनीकाम्ब 3.1
·         जुलाई 2011 हनीकाम्ब 3.2
·         दिसंबर 2011 आइसक्रीम सैन्डविच 4.0.3 और 4.0.4
·         साल 2012 में जैलीबीन 4.1x और 4.2x
·         साल 2013 में जैलीबीन 4.3.1
·         31 अक्टूबर 2013 में किटकैट 4.4-4.4.4, 4.4w-4.4w.2
·         12  नवंबर 2014 में लॉलीपाप 5.0-5.1.1
·         5 अक्टूबर 2015 में मार्शमैलो 6.0-6.0.1


ब्लूटूथ, वाई-फाई और वाई मैक्स

ब्लूटुथ
ब्लूटुथ दो उपकरणों मसलन मोबाइल या कंप्यूटर के बीच बिना तार के संपर्क स्थापित करने की टेक्नॉलॉजी है। इसके तहत शॉर्ट वेबलेंथ रेडियो ट्रांसमिशन का इस्तेमाल करते हुए डाटा को एक उपकरण से दूसरे उपकरण में ट्रांसफर किया जाता है। इसके जरिए एक बार में कई उपकरणों को भी कनेक्ट किया जा सकता है।
ब्लूटुथ शब्द डैनिश या स्वीडिश शब्द ब्लाटांड का अंग्रेजी रुपांतरण है। इसके लोगो में दसवीं सदी में डेनमार्क के राजा हेराल्ड के दस्तखत के इनिशियल्स भी हैं। इस टेक्नॉलॉजी का जन्म 1994 में टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन द्वारा हुआ था।
ब्लूटुथ इन्फॉर्मेशन के लेनदेन का सुरक्षित तरीका है। ब्लूटुथ की खासियतों का विकास करने और लाइसेंस देने की जिम्मेदारी ब्लूटुथ स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप की है। इस ग्रुप में 13 हजार कंपनियां शामिल हैं।
वाई फाई
फोन लाइन के सहारे इंटरनेट अब बीते जमाने की बात हो गई है आजकल तो वाईफाई का जमाना हैजिसके सहारे बिना किसी तार के इंटरनेट एक्सेस किया जा सकता है.वाई-फाई एक वायरलेस टेक्नोलॉजी है जिसका खासा
यूज़ इन्टरनेट से जुड़ने के लिए किया जाता है. वाई-फाई (wi-fi) का फुल नेम वायरलेस वायरलेस फिडेलिटी है.यहवाई-फाई एक ऐसा नेटवर्क है जो रेडियो सिग्नल को ब्रॉडकास्ट करके उच्चय स्पीड का ट्रांसमिशन बनता है जिससे लोग आसानी से इन्टरनेट से जुड़ कर अच्छी स्पीड के साथ इन्टरनेट यूज़ करते है. आज कल जितने भी लैपटॉप,टेबलेट,नोटबुक,स्मार्ट फ़ोन आ रहे है सब में वाई-फाई फैसिलिटी है. वाई-फाईनेटवर्क के लिए एक राऊटर की जरुरत पड़ती है जो वाई-फाई सिंग्नल को फैलाकर कर वाई-फाईफैसिलिटी से युक्त डिवाईसो को कनेक्ट करता है.इस समय
वाई-फाई का प्रयोग एअरपोर्ट,बड़े बड़े होटल,ऑफिस,यूनिवर्सिटी कैम्पस में किया जा रहा है जन्हा लोगो को वायर लेस इन्टरनेट सेवा दी जा रही है.वाई-फाई को राऊटर या एक्सेस पॉइंट लगाकर हॉट स्‍पॉट बनाकर कई सारे वाई-फाई से लैस उपकरणों को आसानी से जोड़ सकते है.भारत में पुणे पहला ऐसा शहर है जो पूरी तरह वाई फाई युक्त है.: ट्रेन में इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराने के लिए रेल प्रशासन ट्रेनों को वाई-फाई तकनीक से लैस करने जा रहा है.इसकी सबसे पहले सेवा दिल्ली-हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस (12302) हुयी थी .
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स्मार्ट मोबाइल से पोर्टेबल वाईफाई हॉट स्‍पॉट बनाकर कई सारे डिवाईसो को जोड़ सकते है.इसके लिएसेटिंग में जाये वायरलैस एंड नेटर्वक आप्शन पर क्लिक करे और Portable Wi-Fi hotspot पर चेक मार्क लगा दे ऐसा करते ही आपका मोबाइल राऊटर या ब्रॉडबैंड के तरीके से काम करने लगेगा .
वाई-फाई सिस्टम की टेकनिकल पॉइंट

1.            यह टेक्नोलॉजी IEEE 802.11 कई स्टैण्डर्ड पर बेस्ड है.
2.            ये टेक्नोलॉजी 1999 के बाद आई थी.
3.            इसकी स्पीड 11 से 60 MB पर सेकंड है.
4.            इसकी रेंज 10 मीटर से लेकर 150 फिट तक है.
5.            वाई-फाई सिस्टम के लिए एक्सेस पॉइंट और वाई-फाई कार्ड् की जरुरत होती है.
6.            वाई-फाई सिस्टम में एक एक्सेस पॉइंट में 30 यूजर कनेक्ट हो सकते है.
7.            वाई-फाई सिस्टम तीन typologies पर काम करता है- (i) एक्सेस पॉइंट बेस्ड (ii) पियर टू पियर (iii)पॉइंट टू मल्टीपॉइंट ब्रिज.
8.            वाई-फाई सिस्टम में दो प्रकार की सिक्यूरिटी के आप्शन है पहला- यूजर ऑथेंटिकेशन और दूसरा सर्वरऑथेंटिकेशन
वाई-फाई सिस्टम सिक्यूरिटी को तीन लेवल से एक्सेस किया जा सकता है-
(
i) SSI (ii) WEP (iii) WAP.
वाई-फाई सिस्टम को पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखना
वाई-फाई यूजर्स को अपने वाईफाई कनेक्शन को पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखना चाहिए। वाईफाई कनेक्शन के साथ थ्री लेवल सिक्युरिटी कवर मौजूद हैजिसका इस्तेमाल कर कंस्यूमर इस खतरे से बच सकता है। वाई-फाई कनेक्शन के साथ डिफॉल्ट सिक्युरिटी ऑप्शंस भी होते हैं। सबसे पहला लेवल डिवाइस को "की" पासवर्ड से प्रोटेक्ट करना है।

ब्लूटूथ और वाई-फाई में क्या अंतर है
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ये दोनो वायरलेस टेक्नोलॉजी पर काम करते है.ब्लूटूथ जो सिस्टम है वह कम दुरी पर दो उपकरणों के बीच डाटा ट्रान्सफर करने के लिए इसका प्रयोग होता है.यह लो बैंडविड्थ पर काम करता है जैसे वायरलेस कीबोर्ड,माउस,इयार्फोने आदि जो कि वाई-फाई हाई बैंडविड्थ पर काम करता है इसकी डिस्टेंस भी ज्यादा होती है.ब्लूटूथ का बिट रेट 2.1 MBPS होता है जबकि वाई फाई का बिट रेट 600 MBPS होता है..

वाई मैक्स
वाई मैक्स हाई स्पीड वायरलेस इंटरनेट सेवा है। जिसका एक अडाप्टर चालीस किलोमीटर के दायरे में बिना मोडेम के इंटरनेट सेवा प्रदान करता है। इसके लिए उपभोक्ता को एक कार्ड दिया जाएगा। इसे कम्प्यूर में डालते ही इंटरनेट सेवा शुरु हो जाएगी। जैसे उपभोक्ता मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं उसी प्रकार तेज रफ्तार वाहनों में चलते-चलते इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकेगा। जबकि वाई फाई सेवा तीस गज दायरे में ही काम करता है। लैपटाप का इस्तेमाल करने वालों के लिए वाई मैक्स सेवा काफी मुफीद है।
वाइमैक्स (अंग्रेज़ी:Y-Max, WiMax) एक दूरसंचार तकनीक है। इस तकनीक के माध्यम से एक कंप्यूटर, दूसरे कंप्यूटर से बिना तारों की सहायता से संपर्क स्थापित कर सकेंगे। वर्तमान में कई देश इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। वर्तमान में मौजूद 2जी और 3जी फोन की सहायता से आप इस सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते। इसके लिए ऐसे फोन की आवश्यकता होगी, जो वाईमैक्स संगत हो। वाईमैक्स इंटरनेट और सेल्यूलर दोनों नेटवर्क पर काम करता है। इसकी गति 2 एमबीपीएस होती है और दस कि॰मी॰ तक यह समान रहती है। इसकी रेंज वाई-फाई की तुलना में ज्यादा होती है। जहां लैपटॉप के लिए इसकी सीमा 5 से 15 कि॰मी॰ होगी, तो वहीं फिक्सड कंप्यूटर स्टेशनों में 50 कि॰मी॰ होगी।
वाई मैक्स यानी वर्ल्ड इंटरऑपरोबिलिटी फॉर माइक्रोवेब एक्सेस है नए जमाने की तकनीक। इसके जरिये आप बिना किसी तामझाम के फास्ट स्पीड इंटरनेट का लुत्फ उठा पाएंगे। वाई मैक्स नाम रखने का फैसला किया गया था 2001 में वाई मैक्स फोरम की बैठक में। इस संस्था का कहना है कि,'वाई मैक्स एक ऐसी उच्च गुणवत्ता वाली तकनीक है, जिसके जरिये वायरलेस ब्रॉडबैंड जमीन के आखिरी हिस्से तक पहुंच सकता है।'
विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए आपको तारों के जंजाल की जरूरत नहीं पड़ती। वैसे, काम करने के अंदाज से यह तकनीक वाई-फाई से काफी जुदा तकनीक है। वाई मैक्स कई किलोमीटर के दायरे में फैले एक बड़े क्षेत्रफल में काम करती है। इसके लिए जरूरत पड़ती है लाइसेंस्ड स्पेक्ट्रम की।
दूसरी तरफ, वाईफाई केवल छोटी दूरी में ही यानी केवल कुछ मीटर के दायरे में काम करती है। इसके लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही, वाईमैक्स का इस्तेमाल इंटरनेट को एक्सेस करने के लिए जाता है, जबकि वाईफाई का इस्तेमाल अपने नेटवर्क को एक्सेस करने के लिए होता है।

कैसे काम करता है यह?
आसान शब्दों में कहें तो यह बडे ऌलाके में फैले वाई-फाई नेटवर्क की तरह ही है। लेकिन वाईमैक्स की स्पीड काफी तेज होती है और साथ ही इसकी कवरेज भी ज्यादा बड़े इलाके तक फैली होती है। इस सिस्टम के लिए जरूरत होती है वाईमैक्स टॉवर और वाईमैक्स रिसीवर की। वाईमैक्स टॉवर दिखने में बिल्कुल मोबाइल फोन टॉवर की तरह लगता है। लेकिन वह टॉवर तीन हजार वर्ग मील के इलाके को कवर कर सकता है।
दूसरी तरफ, वाईमैक्स रिसीवर एक सेटटॉप बॉक्स की तरह होता है। अब ये रिसीवर छोटी से कार्ड की शक्ल में भी आ गए हैं, जिसे लैपटॉप के साथ जोड़कर काम किया जाता है। इसके लिए आपको देनी पड़ती है फीस। वैसे, यह फीस ब्रॉडबैंड के इंस्टॉलेशन कॉस्ट से काफी कम होता है।
सबसे पहले वाईमैक्स टॉवर को तारों के सहारे इंटरनेट के साथ जोड़ा जाता है। फिर ये टॉवर सिग्नल ट्रांसमिट करते हैं। जिन्हें पकड़ते हैं आपके घर में लगा हुआ वाईमैक्स रिसीवर। आप कंप्यूटर को उस रिसीवर से जोड़कर मजे में इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं।


क्या हैं इसके फायदे?
साइबर स्पेस के धुरंधरों की मानें तो वाई-मैक्स इंटरनेट की दुनिया में वह चमत्कार कर सकती है, जो सेलफोन ने टेलीफोन की दुनिया में कर दिखाया था। इसका सबसे बड़ा फायदा जो इंटरनेट के धंधे से जुड़े लोग बाग बताते हैं वह यह है कि आप वाईमैक्स के जरिये कहीं से भी अपने लैपटॉप या पॉमटॉप से बड़ी आसानी के साथ इंटरनेट पर काम कर सकते हैं।
इसके लिए आपको तारों के जंजाल की जरूरत नहीं पड़ती। यानी अब आप गांवों और दूर-दराज के इलाकों से भी बड़ी आसानी से एक्सेस कर सकते हैं अपनी ईमेल। यानी ब्रॉडबैंड से अलग यह हर जगह मौजूद रह सकता है। साथ ही, ब्रॉडबैंड से काफी हद तक सस्ता भी है। इसमें डेटा ट्रांसफर की स्पीड भी काफी तेज होती है।इसी वजह से तो विदेशों में कई मोबाइल फोन कंपनियां इसका इस्तेमाल सेल फोन ऑपरेशंस में भी करना चाहती हैं।
मोबाइल फोन कंपनियों की इस तकनीक के प्रति पनपी मोहब्बत एक वजह यह भी है कि वाई मैक्स उपभोक्ताओं और कंपनियों, दोनों के लिए काफी सस्ती पड़ती है। साथ ही, व्यापारिक प्रतिष्ठानों में इसका इस्तेमाल केबल और डीएसएल के साथ-साथ एक इमरजेंसी लाइन की तरह किया जा सकता है।
इंडोनेशिया में सुनामी के दौरान इसने तो लोगों की जान भी बचाने में लोगों की काफी मदद की थी। इसी के जरिये मुसीबत में फंसे कई लोगों ने राहतकर्मियों से संपर्क साधा था। अमेरिका में आए कैटरिना तूफान के दौरान भी इसने कई लोगों की जिंदगियां बचाई थी।


इसमें भी हैं खामियां
वाईमैक्स के साथ एक आम गलतफहमी यह जुड़ी हुई है कि ये 50 किमी के दायरे में 70 मेगाबिट के स्पीड से काम कर सकता है। लेकिन हकीकत तो यही है कि यह दोनों में से कोई एक ही काम कर सकता है। या तो आप इसके 50 किमी के दायरे में इंटरनेट एक्सेस कर सकते हैं या फिर 70 मेगाबिट प्रति सेकंड की रफ्तार से नेट एक्सेस कर सकते हैं।
आप जितना ज्यादा इसके दायरे को बढ़ाते हैं, उतनी ही इसकी स्पीड कम हो जाती है। वैसे, मोबाइल वाईमैक्स के साथ सबसे बड़ी खामी यही है कि सिग्नल कम या ज्यादा होने के साथ-साथ इसमें इंटरनेट की स्पीड भी स्लो या फास्ट होती रहती है। सिग्नल कम जोर होने की सबसे बड़ी वजह कंक्रीट के जंगल। अक्सर जैसे मोबाइल फोन के साथ होता है कि घनी आबादी वाली जगहों पर सिग्नल कमजोर हो जाता है।
उसी तरह वाई मैक्स में भी घनी आबादी वाली जगहों पर सिग्नल कमजोर हो जाता है। दुनिया में वाईमैक्स सेवा मुहैया करवाने वाली कंपनियां अक्सर दावा तो करती है 10मेगाबिट्स प्रति सेकंड के स्पीड की, लेकिन हकीकत में वह दो से तीन मेगाबिट्स से ज्यादा की स्पीड लोगों को मुहैया ही नहीं करवा पाते। भारत जैसे देश में एक और बड़ी दिक्कत है स्पेक्ट्रम की।
देश में अभी हाल ही स्पेक्ट्रम बंटवारो को लेकर काफी हंगामा मचा था। अभी तक उस विवाद का हल नहीं हो पाया है, ऐसी हालत में वाईमैक्स के लिए स्पेक्ट्रम मिलने की उम्मीद काफी कम है।

मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम

रोटी , कपड़ा , मकान. हमारे देश में कभी इंसान की बुनियादी जरूरतों को इस नारे के साथ परिभाषित किया जाता था. लेकिन इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में...